*# खून के ऑंसू रोना*
जानकी देवी ने आज सोच रखा था कि वह चुप नही रहेंगी बल्कि जवाब देंगी।
माॅं! खाना लगा दीजिए। आज हम दोनों बहुत थक गए है।" बेटे आर्यन ने अपनी माॅं जानकी देवी से कहा।
"बेटे! मैं भी थोड़ी देर पहले ही सोसाइटी में हो रहे सत्संग से आई हूॅं। मैं भी बहुत थक गई हूॅं और मेरे पैरों में भी बहुत दर्द हो रहा है। यदि तुम दोनों को खाना खाना है तो खुद से निकाल कर खा लो वैसे भी मैंने खाना बना दिया है।" ड्राइंग रूम में सोफे पर बैठी जानकी देवी ने अपने घुटनों पर हाथ रखते हुए कहा।
"माॅं! खाना ही तो मांगा है और कुछ तो नहीं करने को कहा और आप बहाने बनाने लग गई। मैं भी तो दिन भर का थका हारा आया हूॅं, इतना तो आपको ध्यान रखना चाहिए।" आर्यन ने गुस्से में अपनी माॅं की तरह देखते हुए कहा।
"कोई नहीं! बहू स्वाति को कह दें। वह खाना निकाल देगी। सिर्फ खाना निकाल कर खाना ही तो है, खाना बनाना तो नहीं है।" जानकी देवी ने बेटे से कहा।
"क्या आप बार-बार खाना बना है, यह बात हमें बता रही हैं। आप दिन भर घर में खाली ही तो रहती हैं तो खाना बना दिया आपने तो कौन सा बहुत बड़ा काम कर दिया और रही बात स्वाति के खाना निकाल कर देने की तो वह भी तो ऑफिस में दिन भर काम करके ही आई है थक गई है।" आर्यन ने गुस्से में कहा।
"तुझे अपनी पत्नी की थकावट दिख रही है लेकिन बूढ़ी माॅं की थकावट तुझे नजर ही नहीं आ रही।" जानकी देवी ने अपनी ऑंखों के ऑंसूओं को झलकने से रोकते हुए कहा।
"किसने कहा था आपको सोसाइटी में हो रहे सत्संग में जाने के लिए? सीढ़ियां चढ़ेंगी तो घुटने में दर्द होगा ही। जानती है आप कि लिफ्ट खराब है फिर भी सीढि़यां उतर कर वहां गई और फिर यहां चढ़कर आई हैं।" आर्यन ने जानकी देवी से कहा।
"जानती हूॅं, मेरी ही गलती है। मुझे सत्संग में नहीं जाना चाहिए था लेकिन क्या करूं? तुम ही लोग तो कहते हो इस उम्र में ज्यादा ना अपनी सहेलियों से बात करो। ना टीवी देखो सिर्फ भगवान का नाम जपो। वही करने तो मैं गई थी।" जानकी देवी ने बेटे की तरफ देखते हुए कहा।
"वह आप घर में बैठकर भी कर सकती थी, वहाॅं पर जाने की कोई जरूरत नहीं थी। आप जानती हैं कि हम दोनों बाहर रहते हैं, काम करते हैं तभी तो पैसा घर में आता है। घर का खर्च इतना अधिक हो गया है कि अकेले मेरे कमाने से हो ही नहीं पाता इसीलिए आपकी बहू को भी कमाना पड़ता है और जब आपकी बहू कमाती है और आप घर में रहती हैं तो थोड़े - बहुत काम तो आप कर ही सकती हैं।" आर्यन ने अपनी मां की तरफ देखते हुए कहा।
"माना कि या मैं बाहर काम करने नहीं जाती। मेरी सेवानिवृत्ति की उम्र हो जाने के बाद मुझे काम से सरकार द्वारा सेवानिवृत्त कर दिया गया लेकिन ऐसा तो बिल्कुल भी नहीं है कि मैं कमा नहीं रही। मेरी पेंशन का पैसा भी तुम ही रखते हो। महीने के खर्चे के नाम पर कुछ मांगू तो कहते हो कि माॅं! तुम्हें सब कुछ तो मिल ही रहा है, पैसे हाथ में लेकर क्या करोगी? तुम दोनों यदि कमा रहे हो तो मैं भी तो कमा रही हूॅं। सरकार ने साठ की उम्र के बाद मुझे काम से छुट्टी दे दी लेकिन तुम लोगों की सोच के अनुसार मुझे घर के कामों से कब छुट्टी मिलेगी? तुम दोनों तो सुबह नौ बजते ही घर से निकल जाते हो। माना कि मैं घर में रहती हूॅं लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि मैं घर में रहती हूॅं तो घर के सारे काम मैं ही करूं? पहले जब मैं ड्यूटी जाती थी मैं घर और बाहर दोनों संभालती थी। यदि स्वाति को कमाना ही है तो मेरी तरह यह भी घर और बाहर संभाल सकती है। इसे तुम समझा सकते थे लेकिन छः महीने से मैं देख रही हूॅं कि जब से मैं रिटायर हुई हूॅं तुम दोनों ने घर का सारा काम धीरे-धीरे मुझे ही सौंप दिया है। पहले तो बहू कुछ घर का काम कर लेती थी लेकिन अब तो घर आते ही तुम दोनों को मेरे हाथ से ही खाना चाहिए। तुम दोनों ने घर में ना तो कामवाली बाई ही रखी है और ना ही खाना बनाने के लिए कोई और ही की व्यवस्था की है। सब कुछ चाहते हो कि मैं ही करूं? इस उम्र में अब मेरे से पहले जैसा काम नहीं होता और मेरे हाथ में भी पैसे नहीं कि मैं कामवाली बाई और खाना बनाने वाली को रख सकूं इसीलिए मैंने फैसला किया है कि मेरी पेंशन के जितने भी पैसे मुझे मिलते हैं वह अब से मेरे पास ही रहेंगे। उसका एटीएम कार्ड अब से तुम नहीं बल्कि मैं रखूंगी और जब भी मुझे जरूरत होगी मैं निकाल लिया करूंगी। मेरे कमाए हुए पैसे हैं और यह मैं घर में ही लगा रही हूॅं इसीलिए मुझे नहीं लगता कि तुम दोनों को ही इसमें कोई आपत्ति होगी। कल सुबह ऑफिस जाने से पहले मेरा एटीएम कार्ड टेबल पर रख कर जाना और हां कल से घर में काम करने के लिए कामवाली बाई आ रही है जिसे मुझे उसे कुछ एडवांस देने हैं इसीलिए दो हजार रूपए भी रख कर जाना। मैं तुम्हें बाद में वापस कर दूंगी।" यें बातें कहने के बाद जानकी देवी धीरे - धीरे अपने कमरे की तरफ बढ़ने लगी।
आर्यन और स्वाति दोनों ही आज जानकी देवी की बातें सुनकर आश्चर्यचकित रह गए थे और जानकी देवी जो रोज ही खून के ऑंसू पीकर जी रही थी अपने बिस्तर पर लेटे हुए ये सोच रही थी कि खून के ऑंसू हमें कोई तभी रूलाता है जब हम उसे रूलाने का मौका उन्हें देते हैं।
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धन्यवाद 🙏🏻🙏🏻
गुॅंजन कमल 💗💞💓
# मुहावरों की दुनिया
Mahendra Bhatt
19-Feb-2023 09:05 PM
बहुत खूब
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डॉ. रामबली मिश्र
18-Feb-2023 09:26 PM
शानदार
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अदिति झा
17-Feb-2023 10:39 AM
Nice 👍🏼
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